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अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता = एक अकेला व्यक्ति बड़ा काम नहीं कर सकता भाड़ चने भूनने की भट्टी को कहते हैं। अगर कोई एक चना उस भट्टी को तोडना चाहे तो वो अकेला यह काम नहीं कर सकता।  सबके साथ की जरुरत पड़ती है। सारे चने मिलकर उस भट्टी को तोड़ सकते हैं।  

भाड़ मैं जाओ

भाड़ मैं जाओ = मुसीबत मैं पड़ो  भाड़ चने भूनने की भट्टी को कहते हैं। जब चने भाड़ मैं जाते हैं तो वे भूनकर ही बहार निकल पाते हैं। 

मुहूर्त

मुहूर्त = समय मांपने की इकाई (४८ मिनट ) मुहूर्त समय मांपने की एक इकाई है।  २४ घंटे मैं ३० मुहूर्त होते हैं।  हर एक मुहूर्त का एक नाम होता है।  इन्हे गिनती के हिसाब से नहीं जाना जाता। किसी भी काम को करने के लिए शुभ मुहूर्त ढूंढा जाता है। https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4

धोबी घर का रहा ना घाट का

धोबी घर का रहा ना घाट का  = लालच मैं बहुत नुकसान उठाना इस कहावत की सुरुवात नरसी भगत की कहानी से है। भगवन श्रीकिशन ने नरसी भगत का भात भरने के लिए सोने चांदी की बारिश कर दी थी। उस गांव के धोबी ने सोचा की मेरे घाट पे भी सोने चांदी की बारिश हुई होगी पहले उसे बटोर लाऊं उसके बाद घर का सोना चांदी बटोरुं। उसने घाट पर जाकर देखा कि वहां कोई बारिश नहीं हुई है।  जब वह वापस आया तब तहत पडोसी उसके घर का सोना चांदी भी उठाकर ले गए थे। 

धेला

धेला = आधा पैसा १९५७ से पहले भारत मैं एक रुपये मैं सोलह आने और एक आने मैं ४ पैसे होते थे। इस लरह एक रुपये मैं ६४ पैसे होते थे। एक पैसे मैं दो धेले होते थे।  एक धेले का काम ना करने का मतलब है की किसी काम का न होना। 

चाँदी के जूते मारना

चाँदी के जूते मारना बहुत पैसे देना पर बहुत बेज्जत्ती करना। 

खोदा पहाड़ निकली चुहिया

खोदा पहाड़   निकली चुहिया मेहनत के अनुरूप फल प्राप्त न होना ही“ खोदा पहाड़   निकली चुहिया”  मुहावरे का सही अर्थ है ।